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'''Turaiha''' |
'''Turaiha''' is a ] ] ] found in ] of ].<ref>{{Cite web |title=तुरैहा समाज को अनुसूचित जाति में करें शामिल |url=https://www.livehindustan.com/uttar-pradesh/rampur/story-include-turaiha-society-in-scheduled-caste-4100202.html |access-date=2024-05-26 |website=Hindustan |language=hi}}</ref><ref>{{Cite web |date=2023-08-20 |title=लाल बहादुर बने भारतीय तुरैहा समाज के युवा जिला अध्यक्ष - Ballia News - बलिया समाचार, Ballia खबर, Breaking News on Crime, Politics & more by बलिया LIVE |url=https://ballialive.in/2023/115530/ballia-district/sikandarpur/lal-bahadur-became-the-youth-district-president-of-indian-turaiha-samaj/ |access-date=2024-05-26 |language=en-GB}}</ref> | ||
<ref><ref>{{cite web |last1=TURAIHA |first1=ASHWANI |title="तराई के संरक्षक: तुरैहा जनजाति की अविनाशी कथा |publisher=ASHWANI KUMAR TURAIHA}}</ref></ref>==Origin== | |||
बहुत समय पहले उत्तरी भारत के उपजाऊ तराई क्षेत्र में, एक छोटा सा समुदाय रहता था जो भूमि और जल के साथ तालमेल में जीवन व्यतीत करता था। वे अपनी गहरी जुड़ाव, खेती, मछली पकड़ने की कला, और पशुपालन के लिए प्रसिद्ध थे। इन लोगों को तुरैहा जनजाति के नाम से जाना जाता था। | |||
तुरैहा जनजाति गंडक नदी के किनारे बसी हुई थी, जो उन्हें हर वह चीज़ प्रदान करती थी जिसकी उन्हें ज़रूरत होती थी। नदी का पानी उनकी फसलों को पोषण देता, उनके मछली पकड़ने के जालों को भरता, और उनके पशुओं की प्यास बुझाता। तुरैहा जनजाति के लोग मानते थे कि नदी देवताओं का उपहार है, और वे इस उपहार का सम्मान करते हुए इसे संजोकर रखते थे। | |||
उन दिनों, जनजाति को कई नामों से जाना जाता था। तराई के विशाल क्षेत्र में जहाँ भी आप जाते, आप उन्हें "तुर्रेहा," "तुरइया," "तुरहा," या "तुरइया" के नाम से सुन सकते थे। ये सभी नाम एक ही शब्द के विभिन्न रूप थे, जो उस क्षेत्र में बोले जाने वाले अलग-अलग बोलियों और भाषाओं को दर्शाते थे। लेकिन तुरैहा के लोगों के लिए, वे सभी एक ही थे—नदी और भूमि के मूल संरक्षक। | |||
इसमे तराई क्षेत्र की जलवायु और भौगोलिक परिस्थितियाँ भी इस जनजाति की शारीरिक बनावट पर गहरा प्रभाव डालती हैं। इस क्षेत्र की उष्णकटिबंधीय मानसून जलवायु, शुष्क सर्दियों और आर्द्र उपोष्णकटिबंधीय वातावरण ने यहाँ के लोगों को सावला और गेरुआ रंग प्रदान किया। औसतन 5 फुट 5 इंच के कद के साथ, तुरैहा समुदाय के पुरुष तराई के पर्यावरण के अनुकूल हो चुके थे। इस इलाके में गर्म और अर्ध-शुष्क जलवायु भी है, और ऊंचाई में अंतर के कारण यहाँ की जलवायु में भी भिन्नताएं हैं। | |||
हालाँकि, जनजाति का नाम सिर्फ एक पहचान नहीं था; यह उनके जीवन शैली का प्रतिबिंब था। "तुरैहा" शब्द को "तराई" से निकला माना जाता था, जो उनके निवास स्थान, उपजाऊ निचले इलाकों का प्रतीक था। जनजाति इस नाम पर गर्व करती थी, क्योंकि यह उनके जीवन का हिस्सा था। | |||
एक वर्ष, नदी ने एक असाधारण फसल दी। मक्का और शकरकंद पहले से भी अधिक ऊंचे और समृद्ध थे, और नदी में मछलियाँ अधिक थीं। तुरैहा लोग खुश थे और जानते थे कि यह देवताओं का संकेत है कि वे प्रकृति के साथ तालमेल में जीवन जी रहे हैं। | |||
इस समृद्धि का जश्न मनाने के लिए, जनजाति ने एक महान उत्सव का आयोजन किया। बुजुर्ग, जो जनजाति के इतिहास और परंपराओं के संरक्षक थे, देवताओं और नदी का आभार व्यक्त करने के लिए इकट्ठा हुए। जैसे ही वे आग के चारों ओर बैठे, सबसे पुराने और बुद्धिमान बुजुर्ग, जिनका नाम ध्रुव था, बोलने के लिए खड़े हुए। | |||
"मेरे लोगों," ध्रुव ने शुरू किया, "हमें नदी और भूमि का आशीर्वाद मिला है। लेकिन केवल धरती से लेना पर्याप्त नहीं है; हमें उसे कुछ देना भी चाहिए। हमारे पूर्वजों ने हमें सिखाया है कि हम इस भूमि के संरक्षक हैं, और यह हमारा कर्तव्य है कि हम इसे भविष्य की पीढ़ियों के लिए सुरक्षित रखें।" | |||
जनजाति ध्यान से सुन रही थी, यह जानते हुए कि ध्रुव के शब्द उनके सामूहिक इतिहास की गहराई से आए हैं। | |||
ध्रुव ने आगे कहा, "हमारा नाम, तुरैहा, इस भूमि से आया है, यह तराई का नाम है। यह हमें यह याद दिलाता है कि हम कौन हैं और कहाँ से आए हैं। लेकिन याद रखें, नाम सिर्फ हमारे कार्यों का प्रतिबिंब है। हमें प्रकृति के साथ तालमेल में जीना जारी रखना चाहिए, खेती को सावधानी से करना चाहिए, मछलियों का सम्मान करना चाहिए, और हमारे पशुओं की देखभाल प्यार से करनी चाहिए। तभी हमारा नाम, चाहे किसी भी रूप में हो, अपने आदर और सम्मान के साथ बना रहेगा।" | |||
जनजाति सहमति में सिर हिलाने लगी, और उन्होंने रात का बाकी समय अपने पूर्वजों की कहानियाँ सुनाने में बिताया, उन पहले तुरैहा की जो गंडक नदी के किनारे बसे थे, और उन कई पीढ़ियों की जो भूमि का सम्मान कर यहाँ फली-फूली थीं। | |||
लेकिन समय के साथ, मध्य एशिया के आक्रमणकारियों और अन्य जातियों के प्रवास और कब्जे ने इस समुदाय पर गहरा प्रभाव डाला। तुरैहा लोग, जो कभी अपनी भूमि के स्वामी थे, धीरे-धीरे अपनी ही भूमि से बेदखल कर दिए गए और गुलामों की तरह व्यवहार किया जाने लगा। उनके समुदाय की संख्या घटने लगी, और वे अपने ही देश में सिमटकर रह गए। परंतु उनके संघर्षों ने उन्हें और भी मजबूत बना दिया। | |||
तुरैहा जाति ने अपनी जीवन शैली में सुधार के लिए अपनी संस्कृति और परंपराओं का पालन जारी रखा। इस समुदाय में बरगद के वृक्ष की पूजा की जाती थी। उष्णकटिबंधीय जलवायु में, बरगद का वृक्ष उनके लिए न केवल एक धार्मिक प्रतीक था बल्कि एक व्यावहारिक आवश्यकता भी थी। गर्मी के दिनों में यह वृक्ष उन्हें ठहरने और सोने के लिए छाया प्रदान करता था। उनके पशुओं के लिए आवास का काम करता था और उनके अन्न को एकत्र और संरक्षित करने में भी सहयोगी था। बरगद के नीचे इकट्ठा होना उनके समुदाय की एकता और साझा विरासत का प्रतीक था। | |||
फिर भी, तुरैहा जनजाति ने अपने अस्तित्व को बनाए रखा। उन्होंने अपने नाम, परंपराओं और जीवन शैली को जीवित रखा, हालाँकि उनकी चुनौतियाँ बढ़ गईं। परंतु अपने उत्थान और सुधार के लिए उन्होंने संगठन बनाना शुरू किया, शिक्षा के महत्व को समझा, और अपने अधिकारों के लिए खड़ा होना सीखा। | |||
जैसे-जैसे रात गहराती गई, बुजुर्गों ने एक निर्णय लिया। वे युवा पीढ़ियों को केवल खेती, मछली पकड़ने और पशुपालन की कला ही नहीं सिखाएंगे, बल्कि उनके नाम का महत्व भी बताएंगे। वे समझाएंगे कि उनके नाम के विभिन्न रूप—तुर्रेहा, तुरइया, तुरहा, और तुरइया—सभी जुड़े हुए हैं, जैसे लोग भूमि और नदी से जुड़े हुए हैं। वे उन्हें यह भी सिखाएंगे कि कैसे अपने हक़ के लिए खड़ा होना और अपने अस्तित्व की रक्षा करना है। | |||
उस दिन से, तुरैहा जनजाति फलती-फूलती रही। उन्होंने अपना ज्ञान और परंपराएँ अगली पीढ़ियों को सौंप दीं, यह सुनिश्चित करते हुए कि उनका नाम कभी भुलाया न जाए। और हालाँकि बाहरी लोग उन्हें अलग-अलग नामों से बुलाते थे, जनजाति जानती थी कि वे सभी एक ही वंश के हिस्से हैं, तराई के मूल संरक्षक। | |||
और इस प्रकार, तुरैहा की कहानी जीवित रही, परंपरा की शक्ति, प्रकृति के साथ तालमेल में जीवन जीने के महत्व, और उस जनजाति के अविनाशी आत्मा की गवाही के रूप में जिन्होंने अपने नाम के सच्चे अर्थ को जाना। | |||
==Belief== | |||
The Turaiha are Hindu. They belong to Shiva and Baghwat Sects. Their deities are siloman{{typo help inline|reason=similar to soliman|date=March 2023}} Baba, Amna Bhawani, Biratiya, Bhairo, Pancho Peer, Ghatoria Baba, Maadho Baba and Kalu Dev. They follows themselves to Guru Machchhendar Nath. They accept ''Mata ]'' and ''Veer ''] as their ancestors and regards them to frame their pictures in their houses. They celebrate their main festival in the month of Sawan held on last Saturday with offering seven chief grains (Wheat, Rice, Gram, Urd, Barley, Peas and Til) with Bread and Kheer ]. Many people scarifie goats to ''Sanichar Raja ] ] (Kalu Baba)''. ''Sanichar Raja (Kalu Baba)]'' is the chief deity ] of Turaihas. They have an impermanent ''panchayat'' which consists of the whole ''biradari''. The ''Chaudhri'' presides and act as the executive officer of the community. Stern action is taken against anyone who fails to obey the ''panchayat'' which does not hesitate to order ''Hukka-Pani band''.{{Cn|date=June 2024}} | |||
==Contemporary problems== | |||
The main problems of this community are frequent joblessness, lack of education and lifelong poverty. Turaiha people are mostly Landless labour and live in ''Kachche Houses''. 98% population of Turaiha people are living below poverty level. 0.1% people are educated and Socio-economic condition of the whole community is very poor. In Indian political reference, Caste factor plays an important role in election, so due to minority, lack of organization and disunity, there is no political Sound and Godfather of Turaihas. Although the government has declared Turaiha as schedule caste since 1952, but the beneficiaries are some other majority holding schedule castes only. The main organizations of Turaihas are Bhartiya Turaiha Mahasabha (Regd.) led by Dr. Ram Swaroop Verma {Aligarh}, Akhil Bhartiya Turaiha samaaj (Regd.) headed by Dr. Ram Avtar "Madhur" (Meerut) and Turaiha Machhuaara kanyaan Parishad (Regd.) presided by Dr. Kripaal Singh Turaiha (Rampur). Akhil Bhartiya Turaiha Samaj Bilari (Regd.) presided by Dr. Ajay pal Singh Vill. ] (Moradabad) UP.{{Cn|date=June 2024}} | |||
==Population== | |||
{{unreferenced section|date=August 2012}} | |||
*India about 609,000 | |||
*Uttar Pradesh 175,000 | |||
*Bihar 248,000 | |||
*West Bengal 96,000 | |||
*Uttaranchal 10,000 | |||
*Delhi 55,000 | |||
*Jharkhand 25,000 | |||
*Maharashtra 10,000 | |||
==References== | ==References== |
Revision as of 12:54, 26 December 2024
Hindu fishing casteAn editor has nominated this article for deletion. You are welcome to participate in the deletion discussion, which will decide whether or not to retain it.Feel free to improve the article, but do not remove this notice before the discussion is closed. For more information, see the guide to deletion. Find sources: "Turaiha" – news · newspapers · books · scholar · JSTOR%5B%5BWikipedia%3AArticles+for+deletion%2FTuraiha%5D%5DAFD |
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Turaiha is a Hindu fishing caste found in Indian state of Uttar Pradesh.
References
- "तुरैहा समाज को अनुसूचित जाति में करें शामिल". Hindustan (in Hindi). Retrieved 26 May 2024.
- "लाल बहादुर बने भारतीय तुरैहा समाज के युवा जिला अध्यक्ष - Ballia News - बलिया समाचार, Ballia खबर, Breaking News on Crime, Politics & more by बलिया LIVE". 20 August 2023. Retrieved 26 May 2024.
Notes
- Crooke, William (1896). The tribes and castes of the North-western Provinces and Oudh. Office of the superintendent of government printing. OCLC 4770515.
- Kitts, Eustace J. (1885). A compendium of the castes and tribes found in India. Education Society's Press. OCLC 221519543.
- Bhattacharya, Jogendra Nath (1896). Hindu castes and sects: an exposition of the origin of the Hindu caste system and the bearing of the sects towards each other and towards other religious systems. Thacker, Spink. OCLC 11383590.
- Turner, A. C. (1933). Census of India, 1931, vol. XVIII. United Provinces of Agra and Oudh. Part I. The Superintendent, Printing and stationery, United Provinces. OCLC 79175745.
- Gazetteer of the Rampur State. W.C. Abel, Govt. Press, United Provinces. 1911. OCLC 15933577.
- Rose, H. A. (1911). A glossary of the tribes & castes of the Punjab & North-west frontier province. Superintendent, government printing, Punjab. OCLC 63616288.
- Retrieved January 24, 2019, from http://164.100.129.6/netnrega/state_html/UID_rpt_detail.aspx?DBT=&page=P&type=1&short_name=MH&state_name=MAHARASHTRA&state_code=18&district_name=SANGLI&district_code=1812&block_name=JATH&block_code=&panchayat_name=VHASPETH&panchayat_code=1812005145&fin_year=2014-2015&source=&Digest=NVy2UbhJ4gfnhqi/F4ln+w